July 8, 2024

फिर सताया लॉकडाउन का डर… तो सिर पर गठरी लाद निकल पड़े गांव की ओर

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फिर सताया लॉकडाउन का डर...

मुंबई,

आंखों में रोजगार का सपने लिए गांवों के हजारों लोग बड़े शहरों की तरफ गए. वहां रोजगार भी मिल गया. और गृहस्थी की गाड़ी एक बार फिर पटरी पर दौड़ने लगी.. इस बीच जनवरी में कोरोना ने फिर कोहराम मचाना शुरू कर दिया.जिससे लोग डरने लगे. पॉजिटिव की संख्या बढ़ने के बाद बड़े शहरों में लॉकडाउन की सुगबुगाहट शुरू होने लगी. अब इन सभी के पास वापस घर लौटने के सिवाय कोई विकल्प नहीं दिख रहा है. लाचारी में परदेस से लौटने को मजबूर हो गए है. क्योंकि कोरोना की पहली लहर में अचानक लॉकडाउन के बाद बड़े शहरों से घर लौटने वाले प्रवासियों की दिल दहला देने वाली तस्वीरें हम सबने देखी हैं. एक बार फिर ऐसा ना हो इसलिए महामारी की तीसरी लहर से पहले लोग एक बार फिर ऐसा करने पर मजबूर है.

फिर सामने आने लगी पलायन की तस्वीरें

एक बार फिर ताजा हो रही है दिलों में बसी पुरानी तस्वीर. जिसमें बड़े शहरों से पलायन करते प्रवासी अपने कंधों पर जिंदगी का बोझ लिए डरे हुए बेबस लोग घर वापसी के लिए निकल गए है. रेलवे स्टेशन और बस अड्‌डों पर भीड़ लगी है. जिंदगी की जद्दोजहद में एक तरफ पेट की भूख है तो दूसरी तरफ कोरोना का डर…लेकिन बस एक ही चाहत जल्द से जल्द घर लौटना.

प्रवासियों को सताया लॉकडाउन का डर

गुरुवार रात मुंबई के लोकमान्य टर्मिनस रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों पर मजदूरों की भारी भीड़ उमड़ी. लोगों को पिछली बार की तरह लॉकडाउन का डर है..दरअसल, मुंबई में पिछले कुछ दिनों से कोरोना के केस तेजी से बढ़े हैं. जिसकी वजह से सरकार को सख्त पाबंदियां लगानी पड़ी. लेकिन केस अभी भी लगातार बढ़ रहे है. जिसकी वजह से गरीब और प्रवासी मजदूरों को लॉकडाउन का डर सताने लगा है.

स्टेशनों और बस अड्डों पर उमड़ी भीड़

रेलवे स्टेशन के बाहर UP-बिहार के सैकड़ों लोगों का जमावड़ा है. किसी को यूपी जाना है तो किसी को बिहार…भूखे-प्यासे सबकों बस घर पहुंचवने का इंतजार है. मजदूरों का कहना है कि पहली बार जब हम लॉकडाउन में फंसे तो भूखे मरने की नौबत आ गई थी. कहीं ये सब दोबारा ना देखना पड़ जाएं.. क्योंकि यहां रुके तो भूखों मरने की नौबत आ जायेगी..काम चलेगा नहीं. ऐसे में यहां रहकर क्या करेंगें?.

कोविड नियमों की उड़ी धज्जियां

स्टेशन के बाहर और अंदर बस एक ही चीज दिख रही थी. वो है प्रवासी मजदूर. जिसके मुंह पर ना मास्क था और ना ही 2 गज की दूरी…दूर दूर तक ना स्कैनिंग की कोई व्यवस्था. ऐसे में लोगों का ट्रेनों में यात्रा करना किसी खतरे को मोल लेने से कम नहीं है.

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