July 8, 2024

हिंदुस्तान-पाकिस्तान का बंटवारा नहीं चाहते थे बापू, जिन्ना की जिद्द के चलते माननी पड़ी थी हार

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नमन सत्य ब्यूरो

15 अगस्त, सन् 1947 में भारत को आजादी मिली थी। आजादी की लड़ाई में सबसे अहम भूमिका महात्मा गांधी ने निभाई थी। आजादी मिलने के कुछ समय बाद ही भारत और पाकिस्तान को दो हिस्सों में बांट दिया गया था, जिसका जिम्मेंदार महात्मा गांधी को ठहराया जा जाता है। अक्सर ये सुनने को मिलता है कि, अगर गांधी चाहते तो देश को दो भागों में बटने से रोक सकते थे, लेकिन उन्होनें ऐसा नही किया। गौरतलब है कि हिंदू-मुसलिम को अलग करने की पहल सबसे पहले साल 1930 में हुई थी। इस पहल की शुरूआत मोहम्मद इकबाल ने की थी, जिसमें सभी मुस्लमानों ने उनका साथ दिया था। इसके साथ ही साल 1933 में रहमत अली ने भी हिंदू-मुसलिम के लिए अलग-अलग देश होने का प्रस्ताव रखा था। हालांकि, गांधी और कांग्रेस ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था, जिसके चलते देश के कई हिस्सों में हिंदू-मुस्लिम दंगे भी हुए थे। वही जब देश में पहली बार चुनाव हुए, तो उस दौरान मुस्लिम लीग का पलड़ा भारी रहा, जिसके चलते एक बार फिर देश के बटवांरे की बात ने तूल पकड़ लिय़ा था। इस बात से परेशान गांधी ने  5 अप्रैल 1947 को भारत के आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि भारत में जिन्ना को प्रधानमंत्री बना दिया जाएं, लेकिन गांधी की इस बात से जिन्ना बिल्कुल भी सहमत नही थे। लिहाजा वो अपनी मांग पर अडिग रहें। जिसके चलते देश के दो हिस्सों हो गए। इसके बावजूद भी गांधी ने हार नहीं मानी और देश को जोड़ने के लिए 18वीं बार जिन्ना के साथ बैठक की, लेकिन गांधी की वो बैठक भी बेनतीजा रही। शायद इसी वजह से गांधी देश की आजादी के जश्न में भी शामिल नहीं हुए। उस बीच लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत और पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बनने की इच्छा जाहिर की थी, उसे भी जिन्ना ने मानने से इंकार कर दिय़ा था और खुद पाकिस्तान का गवर्नर जनरल बनने का ऐलान कर दिया। जिसके बाद दोनों देश अलग हो गए और उस दिन पूरी तरह से दो देशों को जोड़े रखने का सपना महात्मा गांधी का चकना चूर हो गया।

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