June 26, 2024

ममता के गढ़ में क्यों नाराज है उनके समर्थक ?

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नमन सत्य ब्यूरो

मंगलवार को बंगाल के तीन जिलों में तीसरे चरण के मतदान होने है और ऐसा माना जाता है की जिन तीन जिलों में मतदान होने है वो टीएमसी के गढ़ है, लेकिन इस बार के चुनाव में काफी समीकरण भी बदलते नजर आ रहे है क्योंकि वहां के स्थानीय लोग इस बार टीएमसी के नेताओं से बेहद नाराज दिख रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ इस इलाके के ज्यादातर टीएमसी नेता अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. जिसकी वजह से इस बार यहां कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है. इसके साथ ही इस बार पश्चिम बंगाल के सियासी किले पर अपनी-अपनी पार्टी का झंडा लहराने के लिए तमाम राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. बंगाल की कुर्सी पर कब्जा करने के लिए बीजेपी ने जहां राजनीतिक दिग्गजों को मैदान में उतारा है, तो वहीं ममता बनर्जी भी जनता को लुभाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है.

तीसरे चरण में इन इलाकों की इतनी सीटों पर होंगे मतदान

पश्चिम बंगाल में तीसरे चरण के लिए 6 अप्रैल को वोटिंग होनी है. जिसमें दक्षिण की 24, परगना की 16, हावड़ा की 7 और हुगली की 8 सीटें शामिल है. ये तीनों ही जिले टीएमसी का गढ़ कहा जाता है. हालांकि इन जिलों में कांग्रेस की पकड़़ भी काफी मजबूत मानी जाती है. अगर पिछले यानि कि 2016 विधानसभा चुनाव की बात करें तो ममता बनर्जी की टीएमसी ने इन तीनों जिलों की 31 सीटों में से 29 सीटों पर जबरदस्त तरीके से जीत हासिल की थी और विरोधियों का सफाया कर दिया था. हालांकि वाम दल और कांग्रेस 1-1 सीट पर ही जीत हासिल कर सकी थी। जबकि बीजेपी का खाता तक नहीं खुला था. साल 2016 के चुनाव में टीएमसी ने विरोधियों का सफाया जरूर किया. लेकिन बदलते वक्त के साथ टीएमसी की जनता से पकड़ धीरे-धीरे कमजोर होती चली गई. टीएमसी की पकड़ कमजोर होने के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं. पहला तो ये कि 10 सालों के ममता बनर्जी के शासन के खिलाफ एंटी इनकमबैंसी और दूसरा लोकल स्तर पर नेताओं का भ्रष्टाचार. ये दो ऐसे प्रमुख कारण है जिससे इस बार ममता बनर्जी को दो-चार होना पड़ रहा है. हालांकि इन चुनावों के बीच ममता बनर्जी को भी इस बात का एहसास है कि इस बार का चुनाव पहले जैसा तो नहीं है. कहीं एंटी इनकमबैंसी है तो कहीं उनके स्थानीय नेताओं के खिलाफ लोगों में नाराजगी. यही वजह है कि मामले की गंभीरता को समझते हुए ममता बनर्जी ने अपने आधे से ज्यादा उम्मीदवारों को बदल दिया. हावड़ा की 7 सीटों में से दो सीटों पर नए चेहरे को उतारा है. जबकि हुगली की 8 में से 5 सीटों पर अपने सीटिंग विधायकों का टिकट काटकर नए योद्धाओं को मैदान में उतारा है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो ममता बनर्जी को डर है कि इस बार एंटी इनकमबैंसी की वजह से कहीं उन्हें नुकसान ना उठाना पड़े. यही वजह है कि उन्होंने अपने आधे से ज्यादा उम्मीदवारों को बदल दिया.

ममता के लिए महत्वपूर्ण है हुगली जिला

हुगली जिला ममता बनर्जी के लिए कई मायनें में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. क्योंकि हुगली जिले में ही सिंगुर विधानसभा सीट आती है. और ये वहीं सिंगूर है जहां ममता बनर्जी ने लेफ्ट शासन के खिलाफ जमीन अधिग्रहण विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया था. जिसके बाद उस वक्त की शासन वाम सरकार को सिंगूर से टाटा के नैनो कार के कारखाने को हटाने के लिए बाध्य होना पड़ा था. सिंगूर आंदोलन का ही नतीजा रहा कि ममता लोगों में इतनी ज्यादा लोकप्रिय हुईं कि उन्होंने प्रदेश से वामपंथियों की 34 साल की सत्ता को उखाड़ फेंका था. और बंगाल में ममता बनर्जी के रूप में एक नई सरकार का उदय हुआ था. तीसरे चऱण में जिन सीटों पर मतदान होना है. उसमें टीएमसी को नुकसान होने की एक प्रमुख वजह वाम-कांग्रेस-आईएसएफ के गठबंधन को भी माना जा रहा है. हालांकि इनके  यहां आने से क्या नुकसान होगा. इसे समझाने से पहले हम आपको यहां के वोटरों का जातीय और धार्मिक समीकरण को समझाते है.

दरअसल यहां तीसरे चरण के मतदान में हर तीन मतदाताओं में एक मुस्लिम मतदाता है. इसके साथ ही यहां अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की भी अच्छी खासी संख्या है. तीनों चरण में 29 फीसदी मतदाता मुस्लिम हैं. एससी-एसटी मतदाताओं की आबादी भी 31 फीसदी हैं. इन आंकड़ों को देखने के बाद अब अंदाजा लगाना आसान हो गया होगा कि क्यों यहां टीएमसी इतनी ज्यादा मजबूत स्थिति में है.

वाम-कांग्रेस और आईएसएफ के गठबंधन से ममता को लग सकता है तगड़ा झटका

वाम-कांग्रेस और आईएसएफ इन तीनों दलों के गठबंधन ने इस बार चुनावों का समीकरण पूरी तरह से बदल दिया है. इन्हीं इलाके में पिछली बार हुए चुनाव में ममता लहर के बावजूद वाम दल और कांग्रेस ने एक एक सीट जीती थी और कई सीटों पर कांटे की टक्कर देने में कामयाब रही थी. जबकि इस बार इन दोनों दलों के साथ फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्धकी भी ममता के खिलाफ मैदान में ताल ठोक रहे हैं. खास बात ये भी है कि इसी इलाके में फुरफुरा शरीफ भी है, इसीलिए इस इलाके में अब्बास सिद्धकी की अच्छी खासी पकड़ मानी जाती है. ऐसे में अगर इन सीटों पर मुस्लिम वोट का बंटवारा होता है तो इसका सीधा नुकसान ममता बनर्जी को ही उठाना होगा. जबकि इस बार इस सियासी अखाड़े में एक और नए योद्धा की एंट्री हो गई है. जिसने ममता की चिंता को औऱ भी ज्यादा बढ़ा दिया है. हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी भी इस बार बंगाल में अपने उम्मीदवार उतारे हैं. खासकर उन इलाकों में जहां मुस्लिम की आबादी काफी ज्यादा है. ऐसे में वो भी मुस्लिम वोट काटेंगे. हालांकि उनके मैदान में उतरने से ममता को कितना नुकसान होगा. इस बात का अंदाजा फिलहाल लगाना थोड़ा मुश्किल है. लेकिन जानकारों की मानें तो ओवैसी के मैदान में आने से ज्यादा प्रभाव तो नहीं पड़ेगा. लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि मुस्लिमों में एक युवा वर्ग ऐसा भी है जो ओवैसी को अपना नेता मानता है. यही वजह है कि हैदराबाद की पार्टी ने बिहार चुनाव में भी चार सीटों पर जीत हासिल की थी. जबकि दूसरी तरफ अगर देखें तो हिंदू वोटर भी कई भाग में बंटे हुए हैं. ऐसे में बीजेपी की नजर सिर्फ हिंदू वोटरों पर ही है. बीजेपी की कोशिश है कि ममता को अगर हराना है तो हिंदुओं में जातिगत राजनीति को बढ़ावा ना देकर धार्मिक रंग दिया जाए. ताकि हिंदुओं को संगठित किया जाए जिसका फायदा बीजेपी को मिल सके. जो काफी हद तक होता भी दिखाई पड़ रहा है. वहीं दूसरी तरफ ममता बनर्जी की टीएमसी पर भ्रष्टाचार लगने के आरोपों के बाद ममता ने भी कई नए चेहरों पर भरोसा जताया है. जिससे कुछ लोग खुश तो हैं तो लेकिन एक तबका बेहद नाराज हैं. ऐसे में टीएमसी को नए चेहरों से कितना फायदा होगा. और कितना नुकसान ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

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