June 26, 2024

भ्रष्टाचार से नाराज जनता इस बार हुगली में करेगी बड़ा खेल, ममता बनर्जी के लिये मुश्किल होगी हुगली की डगर?

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बंगाल का हुगली जिला अब तक टीएमसी का गढ़ माना जाता रहा है. लेकिन इस बार के चुनाव में टीएमसी की जमीन खिसकती हुई दिखाई दे रही है. अपनी जमीन खिसकने का अंदाजा ममता बनर्जी को भी हैं. क्योंकि इस बार हुगली जिले के स्थानीय टीएमसी के कई नेताओं ने पार्टी को छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है. ऐसे में इस बार हुगली में क्या खेला होगा ये कहना अभी संभव नहीं होगा. वहीं बंगाल में मां, माटी और मानुष की तरह ही एक और नारा काफी फेमस है, बंगाल निजेर मयेके छै, मतलब बंगाल को अपनी बेटी ही चाहिए. यही वो नारा है जिसे लेकर ममता बनर्जी जनता के बीच जा रही है औऱ बीजेपी पर बाहरी होने का आरोप लगा रही हैं. पश्चिम बंगाल का हुगली सीट, जिसे टीएमसी का गढ़ कहा जाता है. माना जाता है कि साल 2011 से ही यहां टीएमसी काफी मजबूत है, और उनके खिलाफ किसी भी कैंडिडेट का जीत पाना लगभग असंभव सा है. लेकिन कहते हैं ना कि राजनीति में कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता, क्योंकि सियासी अखाड़े में जनता ही जनार्दन होती है. साल 2019 से पहले तक हुगली टीएमसी का गढ़ जरूर हुआ करती था, लेकिन बदलते साल के साथ ही स्थानीय नेताओं ने पाला बदला और देखते ही देखते बीजेपी ने टीएमसी के इस मजबूत किले में जबरदस्त सेंध लगा दी है. जिसके चलते टीएमसी का गढ़ कही जाने वाली हुगली सीट पर लोकसभा 2019 चुनाव में बीजेपी ने भगवा झंडा फहरा दिया. साथ ही हुगली जिले में ही आने वाली आरामबाग लोकसभा सीट बीजेपी भले ही जीत नहीं पाई हो, लेकिन टीएमसी को कड़ी टक्कर देकर अगले चुनाव के लिए दावेदारी मजबूत कर दी.

तीसरे चरण में इन सीटों पर बीजेपी का दबदबा कायम

हुगली और आरामबाग जिले में विधानसभा की कुल 8 सीटें हैं. जिसमें जंगीपाड़ा, हरिपाल, धनियाखाली, तारकेश्वर, पुरसुरा, आरामबाग, गोघाट और खानाकुल है. इन सभी सीटों पर तीसरे चरण में 6 अप्रैल को वोटिंग होनी है. इन सीटों पर बीजेपी के अशोल परिवर्तन के नारे का अच्छा खासा प्रभाव देखने को मिल रहा है. स्थानीय राजनीति की जानकारी रखने वाले एक्सर्ट की मानें तो इनमें से ज्यादातर सीटों पर इस बार बीजेपी का अच्छा खासा प्रभाव दिख रहा है. एक्सपर्ट तो यहां तक उम्मीद लगा रहे हैं कि हो सकता है कि बीजेपी इन सभी सीटों को जीतने में भी कामयाब रहे. इसकी मुख्य वजह यह बताई जा रही है कि यहां टीएमसी के स्थानीय संगठन में ही भारी अंर्तकलह है. कहीं कहीं तो पूरे के पूरे संगठन ने ही बीजेपी में शामिल होकर भगवा झंड़ा थाम लिया है. गौर करने वाली बात ये भी है कि साल 2019 लोकसभा चुनाव में यहां बीजेपी का कोई भी मजबूत संगठन नहीं था. लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव के बाद ना सिर्फ टीएमसी बल्कि लेफ्ट के कई बड़े नेता भी भारी संख्या में बीजेपी में शामिल हो गए और देखते ही देखते बीजेपी इलाके में इतनी मजबूत हो गई कि अब टीएमसी के लिए इस चुनावी बैतरनी को पार करना बेहद मुश्किल नजर आ रहा है.

मुस्लिम बहुल इलाकों में भी BJP का वर्चस्व काय

स्थानीय जानकारों की मानें तो इस बार समीकरण इस तरह से बदल गया है कि जिन सीटों पर मुस्लिम आबादी ज्यादा है. वहां भी बीजेपी काफी मजबूत स्थिति में दिख रही है. क्योंकि मुस्लिम वोट टीएमसी, संयुक्त मोर्चा के बीच बंटता दिख रहा है. ऊपर से औवैसी ने यहां के अखाड़़े में कूदकर टीएमसी के जीत की राह में रोड़े अटकाने का काम किया है. कुल मिलाकर देखें तो लेफ्ट, कांग्रेस, आईएसएफ और ओवैसी के मैदान में आने से नुकसान सिर्फ टीएमसी को होता हुआ दिखाई दे रहा है. जबकि दूसरी तरफ टीएमसी अपने मुस्लिमों वोटरों को एक करने की कोशिश कर रही है तो वहीं बीजेपी ने भी हिंदुओं को सुरक्षित, एकजुट और मजबूत करने का नारा दिया है. इसीलिए यहां हिंदू वोटर भगवा झंडे के लिए लामबंद होते दिखाई दे रहे हैं. जिस तरह से बीजेपी इन सीटों पर मजबूत होती दिखाई दे रही है. उसे देखकर ऐसा लगता है कि ममता का किला इस बार टोड़ने में शायद बीजेपी कामयाब हो जाए. बहरहाल इन चुनावी सरगर्मियों के बीच स्थानीय लोगों का कहना है कि दीदी ने कई स्तर पर बेहद काम किया है. इसीलिए लोग दीदी से खुश तो हैं. लेकिन टीएमसी के अलग हुए विधायक और स्थानीय नेता दीदी को हानि पहुंचा सकते हैं। वहीं दूसरी तरफ दबी जुबान में दीदी के नेताओ के भ्रष्टाचार के भी काफी चर्चे है l स्थानीय लोग दबी जुबान में दीदी के नेताओं पर

किसी भी छोटे-मोटे काम के एवज में लिए पैसे लेने की बात बोल रहे है। लोगो का खाना है की यहां भ्रष्टाचार इतना ज्यादा बढ़ गया है कि अगर आपकी किसी नेता से अच्छी जान पहचान नहीं है, या फिर आपके पास पैसे नहीं हैं तो फिर आपका काम होना लगभग असंभव है. यही वजह है कि इस बार वोटर टीएमसी के स्थानीय नेताओं से खासा नाराज दिखाई दे रहे हैं. ऐसे में चारो ओर से मिल रही प्रतिक्रियाओं को देखें तो इस बार टीएमसी के लिए राह काफी मुश्किल हो गई है. अगर वोट पर्सेंटेज में थोड़ा बहुत ही उलटफेर हुआ तो टीएमसी का किला भेदने में बीजेपी कामयाब रहेगी. गौरतलब है कि जनता का मुड़ इस बार क्या है इसे समझना इतना आसान नहीं है. क्योंकि कोई भी खुलकर कुछ भी कहने से इनकार कर रहा है. ऐसे में इंतजार 2 मई का है. जब चुनाव के नतीजे आएंगे तब पता चलेगा कि टीएमसी अपना किला बचाने में कामयाब रहती है या फिर हुगली के मैदान में बीजेपी की गुगली काम कर जाएगी.

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