September 30, 2024

स्पेशल डेस्क

सोमवार से शुरू हुए लोकआस्था के महापर्व छठ पूजा का त्योहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, नेपाल और बंगाल में इस त्यौहार का एक अलग ही खास महत्व माना जाता है, हालांकि अब इस पूजा को ग्लोबल स्तर पर भी धूमधाम से मनाया जाने लगा है। इस त्यौहार की सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि श्रद्धालुओं को त्योहार के दौरान किसी तरह का ग्रह, नक्षत्र या मुहूर्त निकालने की जरूरत नहीं होती हैं। त्योहार के दौरान श्रद्धालु सिर्फ और सिर्फ साधना और भक्ति में लीन होते हैं। आइए आपको बताते हैं इस त्यौहार की और भी कुछ खास बात जो इसे और भी ज्यादा बेहद खास बनाती हैं।

  • यह त्यौहार 4 दिन का होता है। इस दौरान श्रद्धालु 36 घंटे का व्रत रखते हैं।

पहले दिन नहाए खाए

छत पर्व के पहले दिन नहाए खाए के तौर पर मनाया जाता है। उस दौरान श्रद्धालु अपने घर को पूरी तरह से शुद्ध गंगाजल से धोकर स्वच्छ करते हैं और उसके बाद नहाने के बाद खाते हैं।

दूसरा दिन खरना

छठ त्यौहार का दूसरा दिन खरना के तौर पर मनाया जाता है इसे कुछ लोग लोहंडा भी कहते हैं। खरना के दौरान व्रत रखने वाले लोग पूरे दिन व्रत रखते हैं और शाम को सूर्य की पूजा के बाद फल या खीर का सेवन करते हैं और इसके बाद से ही 36 घंटे का व्रत शुरू हो जाता है जो छठ समापन के बाद ही खत्म होता है।

तीसरा दिन संध्या अर्घ्य

छठ के तीसरे दिन श्रद्धालु किसी घाट किनारे संध्या अर्घ्य देते हैं, उसके बाद श्रद्धालु अपने घर पहुंच कर रात को कोसिया भराई (गीत भजन) करते हैं।

चौथा दिन छठ पूजा

छठ पूजा का चौथा दिन बहुत ही खास माना जाता है क्योंकि यह इस त्यौहार का आखरी दिन होता है और इस दौरान श्रद्धालु भोर भोर (अंधेरे सुबह में) उठकर घाट किनारे पहुंचते हैं और सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद व्रत रखने वाले श्रद्धालु अपने घर पहुंचकर छठ पूजा के प्रसाद ग्रहण करते हुए 36 घंटे का निर्जला व्रत तोड़ देते हैं और यही से छठ पूजा का समापन हो जाता है।

36 घंटे कैसे रहते हैं व्रत रखने वाले श्रद्धालु

छठ के दौरान जो लोग व्रत रखते हैं उनके लिए शुद्ध एवं शाकाहारी भोजन तैयार होता है। जो बिना प्याज लहसुन के बनाए जाता है। उस दौरान श्रद्धालु अपना आसन जमीन पर ही लेते हैं। सबसे खास बात यह है कि जो छठ का प्रसाद तैयार किया जाता है वह उन्हीं सामग्री से तैयार होता है जो छठ के दौरान इस्तेमाल किया जाता है। इस दौरान श्रद्धालु इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि जो प्रसाद तैयार किया जाना है उस पर ना तो किसी का पैर लगे और ना ही कोई पंछी उस पर चौंच मार सकें। इस दौरान श्रद्धालु सभी नई वस्तु एक ग्रहण करता है जिसमें नए चूल्हे से लेकर नए बर्तन, वस्त्र और लकड़ी के सूप का इस्तेमाल किया जाता है।

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