July 5, 2024

राजीव गांधी खेल रत्न अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार के नाम से जाना जाएगा

0

नेशनल डेस्क

भारतीय खेलों के सर्वोच्च पुरस्कार के नाम से विख्यात राजीव गांधी खेल रत्न अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार के नाम से जाना जाएगा। क्योंकि शुक्रवार को मोदी सरकार ने इस पुरस्कार का नाम बदल दिया है। इस बात की जानकारी पीएम मोदी ने खुद ट्वीट कर देशवासियों के साथ साझा की है। पीएम ने अपने ट्वीट में लिखा

“मेजर ध्यानचंद भारत के सर्वप्रथम खिलाड़ी थे। जो देश के लिए सम्मान और गर्व लाए, इसलिए देश में खेल का सर्वोच्च पुरस्कार उनके नाम पर ही रखा जाना उचित है”
उसके आगे पीएम मोदी ने फिर दूसरा ट्वीट किया, जिसमें पीएम ने लिखा कि “इस अवार्ड का नाम देशवासियों के निवेदन पर बदला गया है। दरअसल पिछले कुछ समय से देशवासियों का आग्रह था कि राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदल कर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार रखा जाए इसलिए इस पुरस्कार का नाम अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार रखा जा रहा है”
गौरतलब है कि देश में हॉकी के लिए अब तक तीन खिलाड़ियों को ही इस खेल रत्न अवार्ड से पुरस्कृत किया गया है। जिसमें धनराज पिल्ले, सरदार सिंह और वर्तमान महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल का नाम शामिल है।

आइए अब आपको बताते हैं कि राजीव गांधी खेल रत्न की शुरुआत कब और कहां से हुई थी।

राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार की शुरुआत साल 1991 और 92 के बीच में की गई। ये पुरस्कार भारतीय खेलों का सर्वोच्च पुरस्कार है। इस पुरस्कार को हासिल करने वाले खिलाड़ी को एक प्रशस्ति पत्र, अवार्ड और 25 लाख रुपए राशि के तौर पर दिया जाता है। आपको बता दें कि देश में सबसे पहला पुरस्कार भारतीय ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद को दिया गया था। तब से लेकर अब तक देश में कुल 45 खिलाड़ियों को यह अवार्ड दिया जा चुका है। जिसमें भारतीय क्रिकेटर रोहित शर्मा से लेकर रेसलर विनेश फोगाट तक के खिलाड़ी शामिल है। आइए अब आपको यह भी बताते हैं कि आखिरकार इस पुरस्कार का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद के नाम से ही क्यों रखा गया। दरअसल मेजर ध्यानचंद को हॉकी खेलना बेहद पसंद था। उन्होंने अपनी छोटी सी उम्र में ही भारतीय सेना को ज्वाइन कर लिया था। ऐसे में उनको हॉकी खेलने का समय नहीं मिल पाता था लिहाजा अंधेरी रात में चांद की रोशनी के आगे मेजर ध्यानचंद हॉकी की प्रैक्टिस करते रहते थे। जब इस बात का पता उनके साथियों को लगा तब उनके साथी उनको ध्यानचंद के नाम से पुकारने लगे। लिहाजा तब से उनको ध्यानचंद के नाम से ही पुकारा जाने लगा। मेजर ध्यानचंद की कहानी बस इतनी ही नहीं है। ध्यानचंद ने साल 1928 1932 और 1936 के ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल हासिल किया था। उसी बीच बर्लिन ओलंपिक के दौरान ध्यानचंद के शानदार प्रदर्शन को देखते हुए हिटलर ने उन्हें जर्मनी टीम की तरफ से हॉकी खोल खेलने का प्रस्ताव दिया था लेकिन मेजर ध्यानचंद ने हिटलर के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर भी कहा जाता था। ध्यानचंद के इस जादूगर नाम के पीछे भी एक शानदार कहानी है। दरअसल 1928 के एम्सटर्डम ओलंपिक में ध्यानचंद ने सबसे ज्यादा गोल किए। तब एक अखबार में हॉकी के जादूगर नाम से उनकी खबर लगी और उसके बाद से उन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाने लगा। ध्यान चंद की कहानी भी बेहद अजीब ही है, हम यह बात इसलिए कह रहे हैं क्योंकि जो व्यक्ति जिस खेल के लिए जीता था, उसका अंतिम संस्कार भी उसी खेल के मैदान में ही किया गया था। अब आप कहेंगे कि हम क्या कह रहे हैं, तो आइए बताते हैं। दरअसल मेजर ध्यानचंद का निधन 3 दिसंबर 1979 को हुआ था। उनके निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार उसी मैदान में किया गया, जहां वो शुरुआती दिनों में हॉकी सीखने जाया करते थे। फिलहाल अब से राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार को मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार के नाम से लिया जाएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *