December 5, 2024

पैसों के लेन-देन से फैल रहा है कोरोनावायरस? रिसर्च में हुआ बड़ा खुलासा

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corona virus cash transmission

नमन सत्य न्यूज ब्यूरो

अक्सर एक सवालों को लेकर हम बेहद परेशान रहते है, की क्या पैसे के लेन देन से भी कोरोना फेल सकता है?
जिसका जवाब शायद ही आपको पता होगा, अगर ये सवाल आपके मन में भी उठता है, तो आज हम आपको बताने जा रहे है, की पैसों के लेन देन से कोरोनावायरस फैलेगा या नहीं? दरअसल यूरोपियन सेंट्रल बैंक के विशेषज्ञों ने रूहर-यूनिवर्सिटेट बोकम के डिपार्टमेंट ऑफ मेडिकल मॉलीक्यूलर वायरोलॉजी के साथ मिलकर एक रिसर्च की है। जिसमें बताया गया कि स्टेनलेस स्टील की सरफेस पर यानी सिक्कों और नोट्स पर वायरस अलग-अलग समय तक जीवित रह सकता है। रिसर्च में ये भी पाया गया कि स्टील की सरफेस पर वायरस अगले सात दिन बाद भी जीवित रह सकता है। हालांकि नोट पर वायरस का असर तीन दिन बाद खत्म हो रहा है। वहीं 10 सेंट के सिक्के पर 6 दिन, 1 यूरो के सिक्के पर दो दिन और 5 सेंट के सिक्के पर एक घंटे बाद कोई वायरस डिटेक्ट नहीं हुआ। डेनियल का कहना है कि 5 सेंट का सिक्का कॉपर का बना है, जिस पर वायरस ज्यादा समय तक नहीं टिकता।

इसका हम पर क्या असर पड़ता है?

किसी सरफेस से हमारी उंगलियों तक यह इन्फेक्शियस वायरस कैसे ट्रांसफर होता है, यह जानने के लिए रिसर्चर्स ने नई तकनीक विकसित की, इसके लिए कंट्रोल्ड इनवायरनमेंट में इन्फेक्टेड बैंकनोट्स, सिक्के और क्रेडिट-कार्ड जैसी पीवीसी प्लेट्स के जरिए यह देखा गया कि कोरोनावायरस (SARS-CoV-2) किस तरह हाथों तक पहुंचता है। तब इन गीली और पूरी तरह से सूख चुकी सरफेस को छूने को कहा गया या आर्टिफिशियल स्किन से उन्हें टच किया गया, सेल कल्चर के जरिए यह देखा गया कि सरफेस से उंगलियों तक कितने वायरस पार्टिकल्स ट्रांसमिट हुए और इनमें कितने इन्फेक्शियस थे। डेनियल का कहना है कि हमने देखा कि सूखी सरफेस से ट्रांसमिशन हुआ ही नहीं। रियल-लाइफ परिस्थितियों में भी ऐसा ही होता है कि सिक्के या नोट्स गीले नहीं होते। इस आधार पर कह सकते हैं कि कैश से SARS-CoV-2 इन्फेक्शन फैलने का खतरा काफी कम है। बता दे कि इससे पहले नोट्स और कोरोनावायरस के बीच की स्टडी हो चुकी है जो पिछले साल अक्टूबर 2020 में एक रिसर्च सामने आई थी। स्टडी ऑस्ट्रेलियाई एजेंसी CSIRO ने की थी। उसमें कहा गया था कि करेंसी नोट्स, ग्लास, प्लास्टिक और स्टेनलेस स्टील पर 28 दिन तक वायरस रहता है। यह इस स्टडी में रिसर्चर्स ने कोरोनावायरस को अलग-अलग सतहों पर एक महीने तक छोड़ दिया था। सूर्य के अल्ट्रावायलेट लाइट इफेक्ट से बचाने के लिए डार्क रूम में रखा गया। उस दौरान उन्होंने यह भी पाया था कि कॉटन जैसी पोरस सरफेस के बजाय ठोस सरफेस पर कोरोनावायरस अधिक समय तक जीवित रहता है।

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