July 8, 2024

पंजाब: कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की क्रिकेट से लेकर सियासी सफर तक की दिलचस्प कहानी

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पंजाब ब्यूरो

पंजाब की राजनीति में पिछले कुछ दिनों से लगातार खींचतान चल रही है। एक तरफ नवजोत सिंह सिद्धू अपना दम दिखा रहे हैं, तो दूसरी तरफ कैप्टन अमरिंदर सिंह भी पीछे नहीं है। ऐसे में लगातार चल रही सियासी घमसान को रोकने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने सिद्धू को पंजाब का कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया है। तो आज हम नवजोत सिंह सिद्धू के क्रिकेट से लेकर सियासी सफर तक की बात करेंगे।

क्रिकेट करियर की तरह ही रहा सिद्धू का सियासी सफर

पंजाब कांग्रेस के अध्‍यक्ष बने नवजोत सिंह सिद्धू का सियासी सफर उनके क्रिकेट करियर की तरह ही रहा है। क्रिकेट के मैदान में संन्‍यास के बाद शानदार वापसी की तो सियासत में ‘वनवास’ के बाद भी जबरदस्‍त तरीके से वापस लौटे। कभी वकार यूनिस की गेंद पर जीरो पर आउट होने के बाद सिद्धू जैसे ‘ सिक्‍सर किंग’ बने, वैसा ही जज्‍बा उन्‍होंने राजनीति की पारी में भी दिखाया है। क्रिकेट के मैदान में अपने छक्‍कों के लिए मशहूर रहे सिद्धू ने राजनीति में हैट्रिक बनाई और अमृतसर से लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव जीते। सिद्धू के बारे में खास बात यह है कि क्रिकेट में भी उनका अपने कप्‍तान से विवाद हुआ और इस कारण उन्होने अचानक संन्‍यास ले लिया था। वहीं राजनीति के कैप्‍टन से भी उनका विवाद हुआ और उस दौरान सिद्दू मंत्री पद छोड़कर ‘सियासी संन्‍यास’ पर चले गए थे। फिर क्रिकेट मैदान में रिटायरमेंट के बाद अब सियासत में भी सिद्धू ने जोरदार ‘कमबैक’ किया है।

2004 में शुरू हुआ सिद्धू का सियासी सफर

नवजोत सिंह सिद्धू ने अपना राजनीतिक सफर 2004 में शुरू किया था। भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने 2004 में सिद्धू को भाजपा में शामिल किया था। इसके बाद सिद्धू हमेशा जेटली को अपना सियासी गुरु मानते रहे। 2004 में ही सिद्धू ने पहली बार अमृतसर लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और कांग्रेस के कद्दावर नेता रघुनंदन लाल भाटिया को 1,09,532 वोटों से हराया। हालांकि बीजेपी से हुई शुरुआत के बाद सिद्धू का राजनीतिक सफर समय-समय पर घूमता रहा। साल 2009 में सिद्धू ओपी सोनी को हराकर तीसरी बार संसद पहुंचे थे। 2014 में भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया था। हालांकि बाद में भाजपा ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बना दिया था, लेकिन सिद्धू राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर 2017 में कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस की सरकार बनने पर उन्हें स्थानीय निकाय मंत्री बनाया गया, लेकिन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से मतभेद के बाद 2019 में उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। और राजनितिक वनवास पर चले गए थे। वहीं बतौर खिलाड़ी और राजनेता के रूप में सिद्धू का विवादों से पुराना नाता रहा है। भाजपा में रहते हुए सिद्धू ने हमेशा ही पार्टी पर अकाली दल से नाता तोड़ने का दबाव बनाया। 2014 में जब बादल परिवार के कहने पर अरुण जेटली अमृतसर से चुनाव लड़ने के लिए आए तो सिद्धू अपने राजनीतिक गुरु जेटली के साथ कभी भी दिखाई नहीं दिए। 2019 में सिद्धू ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर कमेंट किया था कि वह पंजाब के कैप्टन हैं, लेकिन सिद्धू के कैप्टन राहुल गांधी हैं।

2019 लोकसभा चुनाव के दौरान कैप्टन अमरिंदर सिंह खिलाफ खोला था मोर्चा

2019 के लोकसभा चुनाव में सिद्धू ने बठिंडा में चुनाव प्रचार के दौरान कैप्टन अमरिंदर सिंह पर बादल परिवार के कारोबार में 75-25 की हिस्सेदारी बता कर मोर्चा खोल दिया था। लोकसभा में पांच सीटें हारने के बाद कैप्टन ने कैबिनेट मंत्रियों के विभागों में फेरबदल किया। सिद्धू से स्थानीय निकाय विभाग वापस ले लिया गया। जिसके विरोध में सिद्धू ने कैबिनेट पद से इस्तीफा दे दिया था। वहीं बतौर खिलाड़ी सिद्धू मोहम्मद अजहरूद्दीन की कप्तानी में खेलने से मना कर इंग्लैंड का दौरा बीच में ही छोड़ कर वापस आ गए थे। हालांकि अब एक बार फिर से सिद्धू सियासी पिच पर उतर चुके हैं और कांग्रेस मैं अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस बीच पंजाब में वह कांग्रेस की कप्तानी बदलने के पूरे मूड में दिख रहे हैं। इसमें उनका साथ कैबिनेट मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा, सुखबिंदर सिंह सरकारिया, सुखजिंदर सिंह रंधावा दे रहें हैं। कैप्टन के धुर विरोधी चरणजीत सिंह चन्नी पहले से ही सिद्धू के साथ थे। इसके अलावा कई अन्य विधायकों भी सिद्धू के साथ है।

कांग्रेस को पंजाब में नए चेहरे की तलाश?

आपको बता दे कि कांग्रेस को पिछले कई बरस से पंजाब में नए चेहरे की तलाश थी, जो कैप्टन अमरिंदर सिंह का विकल्प बन सके। ऐसे में सिद्धू अपना दावा पुख्ता तरीके से पेश कर रहे हैं। वहीं इसके अलावा सिद्धू यह भी बताने में कामयाब हो रहे हैं कि, उनका अकाली और बादल परिवार के साथ कोई भी नाता नहीं है। जिसकी वजह से वह कांग्रेस को पंजाब में पूरी मजबूती के साथ खड़ा कर सकते हैं। इसके अलावा कांग्रेस आलाकमान भी पूरे देश में संदेश देना चाह रहा है कि वह नए लोगों को अब जिम्मेदारी देने के मूड में है जो बात सिद्धू के पक्ष में जा रही है। गौरतलब है कि सिद्धू के आने के बाद वो सरकार के प्रति लोगों की नाराजगी को दूर करने का काम करेंगे। इसके अलावा जो कांग्रेसी नेता भी बगावत कर रहे हैं सिद्धू उन्हे भी समझाने के बाद उचित पद देकर पार्टी टूटने से बचा लेंगे। आपको बता दे कि सिद्धू की छवि एक ईमानदार नेता के तौर पर देखी जाती रही है, साथ ही वो युवाओं में काफी लोकप्रिय भी हैं। सिद्धू किसानी, बिजली जैसे जमीनी मुद्दे को भी अपनी सरकार में भी उठाते रहे हैं। तो वही जातीय समीकरण के आधार पर सिद्धुनु सिख और हिंदू दोनों धर्म को साधने में कामयाब हो सकते हैं। इससे इतर प्रियंका और राहुल गांधी के करीब होने के नाते सिद्धू पंजाब कांग्रेस के सबसे बड़े नेता बनने की राह पर हैं।

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