October 6, 2024

अस्पताल का खर्च उठाकर अगर आप कोरोना से बच भी गए, तो सरसों का तेल आपकी जान ले लेगा!

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स्पेशल डेस्क, नमन सत्य न्यूज

ऊपर की हेडलाइन देखकर चौंकिए मत। हम यह इसलिए कह रहे हैं क्योंकि जिस तरीके से सरसों के तेल के दाम आसमान छू रहे हैं। उसे खरीदना आम जनता के लिए दूभर होता जा रहा हैं। पिछले साल लॉकडाउन में जहां 120 रुपये प्रति लीटर खाने का तेल बिक रहा था। वहीं अबकी बार देश के कई हिस्सों में इसकी कीमत 200 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गई है। ऐसे में सवाल ये है खड़ा होता है कि सरसों की रिकॉर्ड पैदावार के बावजूद तेल की कीमत आसमान पर कैसे पहुंच गई? वहीं बढ़ती महंगाई के बीच सरकार मूक बधिर बनकर क्यों बैठी है? जो भी हो आम जनता चारों तरफ से परेशान होकर त्राहिमाम कर रही है। एक तरफ कोरोना की मार से दर-बदर भटकते मरीज, तो वहीं दूसरी तरफ पेट्रोल-डीजल में लगी आग से जलते लोग अब रोजमर्रा कि ज़िंदगी में इस्तेमाल होने वाले सरसों के तेल के लिए भी मोहताज होने कि कगार पर पहुंच चुके है। सरकार जनता को छोड़कर अदृश्य हो गई है। वहीं सरसों अनुसंधान केंद्र भरतपुर के निदेशक डॉ. पीके राय के मुताबिक खाद्य तेलों के मामले में अभी देश आत्मनिर्भर नहीं हो सका है। देश में सालाना तकरीबन 70 हजार करोड़ रुपये का खाद्य तेल दूसरे देशों से आयात होता हैं। दूसरी ओर, तिलहन उत्पादन में कमी की वजह से खासतौर पर मंडी में सरसों का रेट आसमान पर है। जब सरसों का रेट ज्यादा होगा तो जाहिर है कि उसके शुद्ध तेल का रेट भी अधिक होगा। ऐसे में इसे सस्ता करने का एक ही तरीका है कि किसान सरसों की पैदावार बढ़ाएं। इन सब बातों और सरकार की नाकामियों के बीच सरसों तेल की बढ़ती कीमतों के पीछे “खपत और लॉकडाउन” मुख्य कारण आपूर्ति प्रभावित होने की मुख्य वजह बताई जा रही है। वहीं अगर देश में सरसों कि खेती की बात किया जाए तो मुख्य रूप से हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में इसकी सबसे ज्यादा पैदावार की जाती है। वहीं खाद्य तेल के रूप में देशभर में इसका उपयोग किया जाता है।

अभी दाम कम होने की उम्मीद नहीं

मार्केट एक्सपर्ट्स के अनुसार पिछले साल का सरसों स्टॉक मिलर्स के पास नाम मात्र का था। इस कारण से कटाई के तुरंत बाद मिलों ने जमकर खरीदारी कर ली। जिसका असर सरसों की कीमत पर पड़ा और उसके बाद तेल की कीमतें भी बढ़ने लगीं। जानकारों की मानें तो सोयाबीन की पैदावार काफी कम है। मिलों के पास रिफाइंड बनाने के लिए सोयाबीन पर्याप्त नहीं है। जिसके कारण रिफाइंड बनाने में भी सरसों का उपयोग किया जा रहा है। ऐसे में तेल की खपत इतनी ज्यादा है कि इस साल 35 प्रतिशत से ज्यादा सरसों की पिराई हो चुकी है। इन सबके बीच बढ़ती खपत के बीच तेल के दामों में कमी आने के आसार फिलहाल नहीं हैं।

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