July 8, 2024

नमन सत्य स्पेशल डेस्क

भारत में कोरोना ने ऐसा विकराल रूप धारण कर लिया है कि चारों तरफ त्राहिमाम मचा हुआ है। अस्पताल में बेड्स भर चुके हैं, ऑक्सीजन सप्लाई कम पड़ रही है, इंजेक्शन मिल नहीं रहे हैं, तो डॉक्टरों के इंतजार में मरीज तड़प तड़प कर दम तोड़ दे रहे हैं। मौतों का आंकड़ा ऐसा है कि अगर श्मशान घाटों को देख लिया जाए तो केवल आश्चर्य और स्तब्ध होने के अलावा इंसान के पास कोई शब्द बोलने के लिए नहीं बचेंगे। मौत का ऐसा तांडव शायद ही कभी किसी ने देखा हो जैसा तांडव मौजूदा वक्त में चल रहा हैं। मानों मौत कह रही हो कि उसके अलावा इस पृथ्वी पर कुछ सच है ही नहीं। इस बीच खबर यह भी है कि सरकार मौतों के वास्तविक आंकड़े छुपा रही है। विश्लेषकों का कहना है कि मौतों के आंकड़े विचलित कर रहे है। लेकिन मौजूदा वक्त में जितनी मौतें हो रही हैं और जो आंकड़े बताए जा रहे हैं वह गलत है। वैज्ञानिकों का मानना यह भी है कि मौत के बढ़ते आंकड़े में नए स्वरूप के वायरस का ज्यादा योगदान है।

मौतों की संख्या की हो रही अनदेखी

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक देश के अलग-अलग श्मशान घाटों में लोगों से बातचीत करने के बाद यह निकल कर सामने आया है कि मौतों की सही संख्या सरकारी आंकड़ों से बहुत ज्यादा है। कुल मौतों का आंकड़ा दो लाख के करीब पहुंचने की सरकारी जानकारी संदिग्ध है। विशेषज्ञों का कहना है कि नेता और प्रशासन बड़ी संख्या में मौतों की अनदेखी कर रहे हैं साथ ही गिनती में भी कमी हो रही है। इसके अलावा परिवार वाले भी कोरोना से हो रही मौत की जानकारी छिपा रहे हैं।

देश के अलग अलग श्मशान घाटों में 24 घंटे जल रही हैं चिताएं

कोरोना से हो रही मौतों ने देश की अलग-अलग श्मशान घाटों को शवों से भर रखा है और लगातार दाह संस्कार हो रहे हैं। लखनऊ का वो मंजर कोई अभी भुला नहीं होगा जहां पर चौबीसों घंटे चिताएं जली। ऐसे ही अहमदाबाद के कभी ना बंद होने वाले इंडस्ट्रियल प्लांट के बड़े विश्राम घाट में 24 घंटे की चिताएं जल रही हैं। वहां काम करने वाले सुरेश भाई बताते हैं कि उन्होंने पहले कभी मौतों का ऐसा अंतहीन सिलसिला नहीं देखा। लेकिन मौजूदा वक्त में वो मृतकों के परिजनों को जो पेपर स्लिप दे रहे हैं उसमें मृत्यु का कारण नहीं लिख रहे हैं। क्योंकि मृत्यु का कारण लिखने के लिए अधिकारियों ने मना कर रखा है।

राज्य छिपा रहे हैं मौत के आंकड़े

कोरोना से हो रही मौतों के बाद देश के अलग-अलग राज्य मौत के आंकड़े छुपाने में जुटे हुए हैं। गैस त्रासदी झेल चुके भोपाल के लोग बताते हैं कि उस हादसे के बाद श्मशान घाट पहली बार इतने व्यस्त हैं। लेकिन भोपाल के अधिकारियों ने अप्रैल के मध्य में कोरोना से केवल 41 मौतों की जानकारी दी। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स बताते हैं कि शहर के विश्राम घाट और कब्रिस्तान में किए गए सर्वे से पता लगा है कि इस अवधि में एक हजार से ज्यादा अंतिम संस्कार कोरोना प्रोटोकॉल के तहत हुए हैं। वहीं उत्तर प्रदेश और गुजरात में हर दिन औसतन 73 से 121 मौत में बताई जाती हैं। जबकि गुजरात के विश्राम घाटों और कब्रिस्तानों में रोज औसतन 610 कोरोना मरीजों के शव पहुंच रहे हैं। ऐसा ही हाल कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ का भी है। दुर्ग जिले में अधिकारियों ने 15 से 21 अप्रैल के बीच कोरोना से 150 से अधिक मौतों की जानकारी दी थी। वहीं राज्य सरकार ने दुर्ग में मौतों की संख्या आधी से कम बताई थी। ऐसे में यह जरूर दिखता है कि मौत के आंकड़ों से सरकार विचलित हैं और लगातार आंकड़े छुपा रही हैं। दूसरी तरफ विशेषज्ञों का कहना है कि मौत के आंकड़े छिपाने के पीछे सरकारों का राजनीतिक एजेंडा भी हो सकता है।

लापरवाही से बने ऐसे हालात, देश में अभी तक केवल 10% वैक्सीनेशन

भारत की स्थिति पर गहराई से नजर रखने वाले मिशीगन यूनिवर्सिटी की महामारी विशेषज्ञ भ्रमर मुखर्जी का कहना है कि यह पूरी तरह से आंकड़ों का संहार है। हमने जितने भी मॉडल बनाए हैं उसके आधार पर हमारा विश्वास है कि भारत में बताई जा रही संख्या से 2 से 5 गुना ज्यादा मौतें हुई हैं। कुछ महीने पहले भारत में स्थिति अच्छी थी। यही सोचकर कि बुरे दिन बीत गए अधिकारियों, नागरिकों और सरकारों ने सावधानी बरतना छोड़ दिया था जिसकी वजह से दोबारा ऐसे हालात उत्पन्न हुए हैं। अब तो हालात ऐसे हो गए हैं कि भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरीके से चरमरा गई है। लोग सोशल मीडिया पर बेड्स, दवाइयां, ऑक्सीजन और इंजेक्शन के लिए गुहार लगा रहे हैं। दूसरी तरफ देश भर में सामूहिक अंतिम संस्कार हो रहे हैं। दर्जनों चिताएं एक साथ धधक रहीं हैं। जबकि दूसरी ओर वैक्सीन लगाने का अभियान भी घिसटता नजर आ रहा है। क्योंकि विश्व का प्रमुख वैक्सीन निर्माता होने के बावजूद अब तक सिर्फ 10% भारतीयों को ही वैक्सीन लग पाई है। भारत को अब अलग रणनीति के तहत सोचना होगा, वैक्सीनेशन बढ़ाना होगा और कोरोना से बचने का उपाय निकालना होगा।

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